Skip to content

Kanak Mani Dixit

  • Home
  • About
  • हिमाल खबरपत्रिका
    • उकालो लाग्दा
  • Nepali Times
    • On the way up
  • Himal Southasian
    • HIMAL
  • Others
    • Articles about Kanak Mani Dixit
    • नागरिक
    • Scroll.in
    • The Kathmandu Post
    • The Rising Nepal
    • Podcasts
  • Books
    • Adventures of a Nepali Frog
  • Petitions
  • Videos
    • Saglo Samaj

दक्षिण एशिया की भुला दी गई बेगम

November 25, 2014 by admin

हिन्दुस्तान टाइम्सको हिन्दी संस्करण (२३ नोवेम्वर, २०१४) बाट

काठमांडू घाटी में एक ऐसा ‘आइकन’ मौजूद है,  जिसका इस उपमहाद्वीप के वे तमाम देश इस्तेमाल कर सकते हैं,  जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश थे,  क्योंकि इस आइकन का रिश्ता उनके साझा अतीत से है। दक्षिण एशियाई संकीर्ण नजरिये के कारण इस हस्ती की स्मृतियों का इस्तेमाल इस उपमहाद्वीप के समाजों के बीच सामूहिक भावना पैदा करने के लिए नहीं किया जा सका। हालांकि,  नेपाल कभी उस रूप में उपनिवेश नहीं रहा,  मगर वह इस शख्सियत से अपने रिश्ते का दावा कर सकता है। इस आइकन तक पहुंचने के लिए आपको काठमांडू में दरबार मार्ग पर स्थित घंटाघर के पास जाना होगा। वहां से आप जामा मस्जिद के दक्षिण में पीछे की तरफ कुछ दूर चलेंगे,  फिर बायीं ओर आपको एक कब्र मिलेगी। यह बेगम हजरत महल की कब्र है। अवध की बेगम,  जिन्होंने अपने पति नवाब वाजिद अली शाह के देश-निकाले के बाद सल्तनत की बागडोर संभाली थी और अंगरेजों के खिलाफ उस स्वतंत्रता संग्राम में मोर्चा लिया था,  जिसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहा जाता है। अगर किसी देश के नागरिकों की तरक्की और बेहतरी के लिहाज से स्व-शासन पहला कदम है,  तो जिन लोगों ने उसकी आजादी के लिए संघर्ष किया और अपनी कुर्बानियां दीं,  उनकी यादों को उसे सामूहिक तौर पर जरूर सहेजना चाहिए।

मगर अफसोस!  दक्षिण एशिया में ज्यादातर मुल्कों की आजादी बंटवारे के विध्वंस के साथ आई,  इसलिए कई साझा विरासतों की चमक फीकी पड़ गई। आखिर जब महात्मा गांधी को ही अनेक भारतीय,  पाकिस्तानी,  बांग्लादेशी और नेपाली दक्षिण एशियाई विभूति की बजाय एक ‘हिन्दुस्तानी’ के तौर पर देखते रहे हैं,  तो भला लखनऊ की बेगम को कौन याद करेगा?  सन 1857 में उत्तर भारत के विशाल हिस्से में,  यानी झांसी से लेकर मेरठ,  लखनऊ,  दिल्ली और कानपुर तक में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह उठ खड़ा हुआ था। तब जंग बहादुर कुंवर ने नेपाल का क्षत्रप बनने के इरादे से उस विद्रोह को कुचलने में अंगरेजों का साथ दिया,  बल्कि लखनऊ और बनारस की मुहिम में तो सैनिकों की अगुवाई उन्होंने खुद की थी। अब यह उनकी उदारता भी हो सकती है या फिर राज-खजानों पर टिकी नजर,  जंग बहादुर ने उन लोगों को भी अपने यहां पनाह दी,  जो उस विद्रोह के नाकाम होने पर अंगरेजों से बचकर उनके पास पहुंचे और इनमें मराठा कुलीन नाना साहब से लेकर बेगम हजरत महल तक शामिल थीं।

बेगम थपथली में रहीं और इस वादी में आने के 20 साल बाद उनका इंतकाल हुआ। उन्हें जामा मस्जिद के मैदान में दफनाया गया। काठमांडू के बाशिंदे अपने बीच बेगम के वजूद से बेखबर रहे,  तो यह इसी बात की एक बानगी है कि हम शेष दक्षिण एशिया से कितने कटे हुए हैं। हालांकि,  हम हिमालय और इस उपमहाद्वीप के रिश्तों का बखान करने के लिए कालिदास के कुमारसंभव का हवाला दे सकते हैं,  हम इस तथ्य पर भी गर्व कर सकते हैं कि शाक्यमुनि जहां पैदा हुए, वह जगह आज के नेपाल में है। अगर आधुनिक दौर से नजीर उठाएं,  तो हम बीपी कोईराला और उनके साथियों को याद कर सकते हैं,  जिन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए उसके स्वतंत्रता सेनानियों के कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था। लेकिन आज की हकीकत यही है कि दक्षिण एशियाई देशों के बीच आपसी सहयोग की तमाम बड़ी बातों के बावजूद हमारे बीच काफी फासले हैं। और हम आज भी शेष दक्षिण एशिया के साथ नेपाल, खासकर काठमांडू घाटी का क्या रिश्ता है,  इससे अनजान हैं। अलबत्ता,  स्कूली किताबें और पर्यटन विभाग की पुस्तिकाएं यही बताती हैं कि नेपाल एक ऐसा राजतंत्र था,  जो अलग-थलग रहते हुए फला-फूला और हम यह स्वीकार करने में नाकाम रहे हैं कि ‘बागमती सभ्यता’ ने इसकी बड़ी उपलब्धियों को आकार दिया और इसे उपमहाद्वीप की अन्य संस्कृतियों तथा अर्थव्यवस्थाओं से इसे जोड़ा।

इस घाटी में लिच्छवी राजवंश मौजूदा उत्तर बिहार के वैशाली से दूसरी सदी के आसपास आया था। भारत के साथ नेपाल का प्राचीन रिश्ता उसे तटीय भारत से भी जोड़ता है। करीब साढ़े तीन शताब्दीसे मौजूदा केरल के नंबूदिरी ब्राह्मण पशुपतिनाथ में मुख्य महंत की भूमिका निभाते आए हैं। कहते हैं कि आदि शंकराचार्य और त्रवणकोर के शासकों ने उनकी वहां नियुक्ति की थी। इसी तरह गोरखाली लड़ाकों की टुकड़ियों में जवानों का ‘तिलंगा’ नाम भी सुदूर दक्षिणी भारत के तेलंगाना से आया है। इसी तरह, ब्रह्मपुत्र और काठमांडू घाटी के तांत्रिक समाज बंगाल के जरिये जुड़े थे।

नेपाल के राजाओं,  बल्कि आखिरी महाराज ज्ञानेंद्र तक ने कामाख्या मंदिर में पशुबलि दी थी। इतिहास के एक दौर में पल्पा के जरिये ढाका में बनी टोपियां नेपालियों के सिर पर सजती थीं। निस्संदेह,  इतिहासकार तिब्बत तथा उत्तर व पूरब के रजवाड़ों के अलावा इस उपमहाद्वीप के अन्य हिस्सों के साथ नेपाल के संबंधों के अनगिनत उदाहरण गिना सकते हैं। लेकिन इन प्रभावशाली प्राचीन संपर्कों के उलट काठमांडू के बौद्धिक वर्ग ने खुद को एक टापू पर समेट लिया। यह न सिर्फ उपमहाद्वीप के दूसरे बौद्धिक समाजों के साथ मेल-जोल बढ़ाने से हिचकता रहा,  बल्कि इसने ऐतिहासिक संपर्को के प्रतीकों को भी नजरअंदाज किया।

नेपाल ने आज अपनी संप्रभुता को खुद ही इतना कमजोर कर दिया है कि पड़ोसी व विदेशी ताकतें लगातार उसके मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करती हैं। जाहिर है,  बाहरी कमजोरी और आंतरिक खेमेबंदी के कारण नेपाल की राजनीति एक निहायत बंद समाज की तरफ बढ़ रही है,  और इस वजह से विमर्श के कई दरवाजे बंद होते जा रहे हैं।
जहां तक बाहरी दुनिया से जुड़ने की बात है,  तो काठमांडू में भारतीय अखबारों और पत्रिकाओं की पाठक संख्या में तेजी से गिरावट आई है। एक-दो दशक पहले तक ये अखबार और पत्रिकाएं हिन्दुस्तान और दुनिया को देखने-समझने की एक महत्वपूर्ण खिड़की खोलती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हम एक ऐसे देश के उत्तराधिकारी हैं,  जिसके पास शेष दक्षिण एशिया को देने के लिए काफी कुछ है,  मगर हमारी संकीर्णता काठमांडू घाटी को दक्षिण एशिया के बंधुत्व का केंद्र बनाने से रोकती है। ऐसे में,  काठमांडू के लिए यह एक अच्छा मौका है कि वह दक्षिण एशिया के केंद्र के तौर पर एक खुला समाज बने रहने के हक में अपनी आवाज उठाए। इसके साथ ही इस अवसर पर हमें अपने दक्षिण एशियाई अतीत को भी याद करने की कोशिश करनी चाहिए,  जिसमें बेगम हजरत महल जैसी शख्सियतें बसी हैं।

Post navigation

Previous Post:

Pride and prejudice at SAARC

Next Post:

सार्कलाई नेपाली मोड

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Enter the keyword

About


Kanak Mani Dixit, 67, is a writer and journalist as well as a civil rights and democracy activist. He is a campaigner for open urban spaces, and is also active in the conservation of built heritage.

Tweets by KanakManiDixit

Books by Kanak Mani Dixit

Peace Politics of Nepal
Dekheko Muluk
Dekheko Muluk

Books by Kanak Mani Dixit

Peace Politics of Nepal
Dekheko Muluk

Blogroll

  • Himal Southasian
  • Madan Puraskar Pustakalaya
  • Spinal Injury Rehabilitation Center
  • हिमाल खबरपत्रिका

Categories

Recent Tweets

Tweets by KanakManiDixit

© 2023 Kanak Mani Dixit | Built using WordPress and SuperbThemes